बचपन वाला प्यार
बचपन वाला प्यार
जब मैं 3 साल का था,
तब मुझे पहली बार प्यार हुआ।
उसने मुझको मैंने उसको
देखा आंखों से इकरार हुआ।
तब मैं कितना नादान था,
इसे प्यार कहते हैं यह भी
नहीं समझता था।
मैंने अपनी चॉकलेट
उसको खाने को दी,
उसकी झूठी पेस्ट्री भी
बड़े शौक से ली।
उसकी पेंसिल टूट गई
तो अपनी पेंसिल दी,
उसकी कॉपी गुम गई तो
अपनी कॉपी दी।
तब मैं कितना नादान था,
इसे प्यार कहते हैं यह भी
नहीं समझता था।
उसके आगे के एक टूटे हुए
दांत को देखकर
मेरी हंसी निकल जाती
उसकी मुस्कान
मेरी मुस्कान बन जाती थी।
उसका रोता देखकर
मैं भी रोता था,
जब टीचर उसे डांटती थी तो
उनसे मन ही मन लड़ता था।
क्योंकि बचपन में तब
मैं नादान था
इसे प्यार कहते हैं
यह भी नहीं समझता था।
