बचपन तुम्हें कैसे लिखूँ!!
बचपन तुम्हें कैसे लिखूँ!!
प्रिय बचपन सुनो तुम जहाँ कहीं भी हो,
यादों में सहेजे हूँ तुम्हें सदैव ख़ुश रहो!!
बहुत याद आती एक दफ़े वापिस तो मिलो,
मेरी समझ आने से पहले ही चले गए, क्यों!
हम समझदार हुए तो तुम नज़रअंदाज़ हो,
क़ीमत नहीं थी तब, पर अब तुम मूल्यवान हो!
निस्वार्थ बालपन के लम्हें जब भी याद करें तो,
बचपन से लेकर पचपन के सिर्फ तुम ही ज़िंदा हो!
प्रिय बचपन तुम्हें लिखने की कोशिश करें तो..
ज़ेहन में तुम्हें खोने की कसक उठती, जाने क्यों!!