बचपन की यादें!
बचपन की यादें!
ये याद सुहानी तब की है जब कि हम बच्चे होते थे,
नटखट और नादान सही पर मन के सच्चे होते थे,
तब दिन हमारा होता था हर रात हमारी होती थी,
तब चाँद और परियों तारों संग मुलाकात हमारी होती थी,
बीते लम्हों की हर यादें कितना अपना सा लगता है,
अब उन लम्हों को फिर से जीना इक सपना सा लगता है!
जब काजल का छोटा टीका बुरी नजरों से हमे बचाता था,
जब रोज शाम को दीये से नजरे उतारा जाता था,
जब दादी की परियों की कहानी मन को कितना भाता था,
जब मां की इक लोरी के आगे नींद भी दौड़ा आता था,
बीते लम्हों की हर यादें कितना अपना सा लगता है,
अब उन लम्हों को फिर से जीना इक सपना सा लगता है!
जब पेड़ों के छावों के नीचे बचपन प्यारा खिलता था,
जब फूलों के बागों में जा तितलियों से मै मिलता था,
जब मिट्टी की खुशबू तन को चंदन सा महका देती थी,
जब कोयल की मीठी बोली मन को चहका देती थी,
बीते लम्हों की हर यादें कितना अपना सा लगता है,
अब उन लम्हों को फिर से जीना इक सपना सा लगता है!
जब खेल खेल में गिरता और गिर कर फिर सम्भलता था,
जब #पिंकू, #टींकू, #गुल्लू संग शाम हमरा ढ़लता था,
जब यारों के संग होने से "खुद का होना" सा लगता था,
जब मित्रों से दूर होने पे "सब कुछ खोना" सा लगता था,
बीते लम्हों की हर यादें कितना अपना सा लगता है,
अब उन लम्हों को फिर से जीना इक सपना सा लगता है!
जब पापा के आ जाने पे झट से पढ़ने लग जाते थे,
जब भइया के एक थप्पड़ से गहरी निंद से भी जग जाते थे,
जब लैम्प में कागज लगा लगा कर हम झपकी ले लेते थे,
जब दादी नानी की गोद में प्यार की थपकी लेते थे,
बीते लम्हों की हर यादें कितना अपना सा लगता है,
अब उन लम्हों को फिर से जीना इक सपना सा लगता है!
जब इतिहास का इसवी सन् हमको बहुत रूलाता था,
जब अल्फा बीटा थीटा में मन उलझ सा जाता था,
जब ज्यामिति प्रमेयो पे हम क्रुध हो जाते थे,
जब संस्कृत के श्लोकों से वाणी भी शुद्ध हो जाते थे,
बीते लम्हों की हर यादें कितना अपना सा लगता है,
अब उन लम्हों को फिर से जीना इक सपना सा लगता है!
जब वर्ग की पहली बेंच पे हर दिन चाँद सा मुखड़ा दिखता था,
जब उसकी गलती खुद के सर ले मैडम से मै पिटता था,
जब प्यारी सी मुस्कान पे मेरी फिजिक्स की नोट्स बिक जाती थी,
जब उंगली से हाथों पे मेरे न जाने क्या लिख जाती थी,
बीते लम्हों की हर यादें कितना अपना सा लगता है,
अब उन लम्हों को फिर से जीना इक सपना सा लगता है!