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Anju Singh

Abstract

4  

Anju Singh

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बचपन की वो सहेलियां

बचपन की वो सहेलियां

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बचपन की वो सहेलियां

बन जाती थीं कभी पहेलियां


बड़ी शिद्दत से हैं याद आती

दिल को थोड़ा बेचैन कर जाती


वक्त ने भले हमें दूर किया

पर वर्षों बाद पुनः मिला दिया


संग संग जो बचपन में खेली

याद आती है वो हंसी ठिठोली


 देख एक दूसरे को चहक उठीं

बचपन की फिर वही महक उठी


आज उम्र सबकी बढ़ने लगी

सभी अनुभवी लगने लगी


कितनी ही मस्तियां किया करतें थें हम

एक पल चुप ना रहतें थें हम


पर अब सभी सहेलियां थकने लगी

पुनः एक-दूसरे से जुड़ने लगी


सब के बाल हैं पकने लगे

पेट भी तों निकलने लगे


सब पर है कोई ना कोई जिम्मेदारी

सबको शुरू हुई कोई ना कोई बीमारी


हम जो बचपन में भागा करती थीं

अब चलते चलते रुक जाया करती हैं


हम सभी बच्चों की फिक्र में है लगी

कभी अपनी बीमारी के ज़िक्र में लगी


देखती हूं जब पुरानी तस्वीरें

 देख कर जी भर जाता है


समझ में नहीं आता कि

यह वक्त कैसे गुजर जाता है


याद करके वह सुनहरें दिन 

ऑंखों में बदली सी छा जाती है


आज जब सबको देखती हूं

 तो सब अधेड़ नजर आती है


कल के ख्वाब जो सजाए थे हमनें

आज हम गुजरे दिनों में खोने लगे


सच ही कहते हैं सब

आज हम बूढ़े होने लगें


फुर्सत होते हुए भी फुर्सत की कमी है

आज हम सहेलियों की आंखों में नमी है


आज फिर दिल की तड़प ने 

हम सहेलियों को है एक किया


पुनः मिलकर हम सहेलियों ने 

अपना दिन गुलजार किया


देख कर एक दूसरे को हम कुछ सोचने लगीं

सच में हम सहेलियां आज बुढ़ी होने लगी।


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