STORYMIRROR

wow world

Abstract

4  

wow world

Abstract

बचपन की शरारत भरी यादें

बचपन की शरारत भरी यादें

1 min
404

वो दिन भी बड़े याद आते हैं !

जिन्हें बिता के हम बड़े हो जाते हैं !!

कभी कंचे तो कभी सितोलिया जमाते थे !

बातों बातों में चिड़िया के संग गाय भी उड़ाते थे !!

तब ख्वाब के लिए वक्त नही था !

और आज ख्वाब हमे दौड़ाते है !!

वो दिन भी बड़े याद आते हैं !

जिन्हें बिता के हम बड़े हो जाते हैं!!


कहानियों में परियो के देश घूम आते थे !

राग द्वेष को हम कोसो दूर भगाते थे !!

पल में रूठ तो पल में मान जाते थे!

और आज खुद ही खुद से बतियाते है !!

वो दिन भी बड़े याद आते हैं !

जिन्हें बिता के हम बड़े हो जाते हैं !!


मंदिर में जब भी भगवान से मिल जाते थे !

कब होंगे बड़े ये सवाल पूछ आते थे !!

शौक से बड़े बनने का किरदार भी निभाते थे !

और आज बड़े बनकर बड़े बनने से कतराते हैं!!

वो दिन भी बड़े याद आते हैं !

जिन्हें बिता के हम बड़े हो जाते हैं !!


चलो फिर से बचपन की सैर कर आते हैं !

गुड्डे गुड्डी की शादी धूमधाम से करवाते हैं !!

यूँ ही झूठमूठ का बवाल मचाते है !

कुछ पल के लिए हम फिर से बच्चे बन जाते हैं !!

वो दिन भी बड़े याद आते हैं !

जिन्हें बिता के हम बड़े हो जाते हैं !!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract