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बचपन से पचपन की अनुभूतियां

बचपन से पचपन की अनुभूतियां

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यूँ तो उम्र का हर दौर अच्छा लगता है।

पर मुझे बचपन सबसे अच्छा लगता है।।


झूठ में लिपटी हुई है बड़ो की सल्तनत।

बच्चों का जहां बेहद सच्चा लगता है।।


वादों-इरादों की तो बात ही निराली।

उम्र कच्ची मगर सब पक्का लगता है।।


अब तो मोल भाव अच्छे से होता है।

तब प्रेम से ही सब बिकता लगता है।।


खुशनुमा है उस दौर की तमाम यादें।

अब हर पल में दर्द रिसता लगता है।।


मौज-मस्ती थी बड़ो की सरपरस्ती में।

अब तो बस वजूद पिसता लगता है।।


बिन स्वार्थ बखूबी निभ जाते थे रिश्ते।

जरा सी बात पे वही खिंचता लगता है।।


उम्रदराज भले ही अब हो गए हैं हम।

अतीत से गुजरो तो दिल बच्चा लगता है।।



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