विचारणीय प्रश्न
विचारणीय प्रश्न
यही सब हूँ आजकल उदास, परेशान और हताश!
मन में हर सांस के साथ आता-जाता काश!
क्यूँ एक सवाल विकराल सा, क्यूँ एक दानव महाकाल सा?
क्यूँ एक प्रश्नचिन्ह सबको उलझाए सा, क्यूँ मन खिन्न मुरझाए सा?
क्यूँ ये सब हो रहा है आज, इंसा-इंसा की ही बन रहा है खराश...??
क्यूँ कलियां ख़ौफ़ज़दा हैं खिलने से, क्यूँ तितलियां डरती हैं मस्त गगन में उड़ने से?
क्यूँ हैवानियत चंद लोगो की पड़ रही है भारी, क्यूँ घुट-घुट के जीना बन रही है लाचारी?
आओ आज से, अभी से करें एक आगाज़, इंसा को इंसा होने का दिलाए एहसास...!
वरना आज तो इंसान सोचता है , कल कहीं ऐसा न जो कि,
भगवान को सोचना पड़े, कि मैंने ये इंसान न बनाया होता काश!
तो अपनी ही रचना से न होना पड़ता यूँ निराश....!!
