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Abhishek Singh

Romance

2  

Abhishek Singh

Romance

बचपन का प्रेम! 2

बचपन का प्रेम! 2

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वर्षों का इंतज़ार हुआ ख़त्म उस पल,

उनपे नज़रें आकर ठहरी जिस पल।

मानो सब रुक सा गया उस पल,

हृदय की गति बढ़ती रही सिर्फ़ उस पल।

पवन के वेग में,

तीव्रता महसूस हुई कुछ पल।

उनके लहराते बाल,

मानो कुछ कह रहे हों उस पल।

बिना कुछ बोले काफ़ी कुछ कह गए,

नज़रों ही नज़रों में एक दूसरे के रह गए।

वो कुछ छण का पल,लम्हों में बदल गए,

मेरे लम्बे इंतज़ार को रुखसत कर गए।

वो विवाह समारोह मानो हमारे लिए ही था,

मिलाने का हमें ज़रिया जो बना था।

हल्के ठंड में चाय की चुसकियों के बीच,

नज़रों से जो शमा बंधा था।

मानो उनसे अभी लिपट जाने को,

दिल कर रहा था।

कसूरे निगाहों की सज़ा ये थी,

उनसे नज़रें मिलाने की खता जो की।


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