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Bhagat Singh

Tragedy

4  

Bhagat Singh

Tragedy

बचे-खुचे बच्चे

बचे-खुचे बच्चे

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बचा-खुचा ढूंढते हैं

बचा-खुचा खाते हैं

बचे-खुचे में से ही बचाते हैं

हँसते हैं, छेड़ते हैं

चिल्लाते हैं चलते जाते हैं

ये बचे-खुचे बच्चे


दोराहे, तिराहे, चौराहे

पर मिल ही जाएँगे

ढूंढते रहते हैं कुछ न कुछ

बिना काम के ढेरों मे से

ढूंढ ही लेते हैं

अपनी इच्छाओं के गुच्छे

ये बचे-खुचे बच्चे


फेंकी गई टूटी चीजों को

धागा बांधकर जोड़ भी देते हैं

पुरानी चीजों को नया मान

इतरा भी लेते हैं

इकतारे से तार तरंगित

ये बचे-खुचे बच्चे


कोई ढीठ बोले

कोई चोर, कोई कामचोर

कोई दया दिखाए

कोई फायदा उठाए

फेंके जाते हैं टुकड़े उछाल

लपकते हैं उनकी तरफ

उछल-उछल

ये बचे-खुचे बच्चे


अनधोए उलझे बाल लिए

रूखे-सूखे से गाल लिए

हड्डी का कंकाल लिए

काँटों का सिर ताज लिए

कल के सपनों का आज लिए

होंठों पर हैं झूठ की झालर

पर दिल मे लिए सपने सच्चे

ये बचे-खुचे बच्चे


बेगाने से, बेचारे से

बंजर से, बंजारे से

ना जाने कहाँ जाना इनको

या कहीं लौट आना इनको

हालातों से पके हुए

पर मन के थोड़े कच्चे

ये बचे-खुचे बच्चे॥


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