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Shakuntla Agarwal

Abstract Children Stories Classics

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Shakuntla Agarwal

Abstract Children Stories Classics

बच्चा

बच्चा

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दिल ये चाहे बच्चा बन जांऊ,

मेघा जब गरजे झूम के बरसे,

मेघा संग मैं भी नाचूं - गाऊं,

छपाक छप-छप करके नहांऊ, 

बरसाती नालों में कागज की नाव चलाऊं,

दिल ये चाहे बच्चा बन जाऊँ,


फिसलन पट्टी पे फिसल इतरांऊ, 

एक झूला छोड़ू दूजे पे जांऊ, 

पकड़ना कोई चाहे हाथ ना आऊँ,

अपनी जीत पे मन ही मन मुस्कांऊ, 

दिल ये चाहे बच्चा बन जांऊ,


खिलौना देख मैं मचल-मचल जांऊ,

समझाने पे भी, बाज ना आऊं,

मय खिलौने के घर आऊँ,

संगी साथियों को दिखा इतरांऊ,

दिल ये चाहे बच्चा बन जांऊ,

 

घर -घर खेलूं पापा बन जांऊ,

मुखिया बन मैं रौब जमांऊ,

बच्चों को कांधे पे बिठा, मेला दिखलांऊ, 

भाई-चारा क्या होता है, का पाठ पढांऊ,

अकेलापन जो फैला दुनिया में, उससे निजात पांऊ, 

दिल ये चाहे बच्चा बन जांऊ,

 

जात पात से ऊपर उठ जांऊ, 

तेर-मेर से परे एक दुनिया बसांऊ, 

बन्धनों की गांठे खोल सौहृदय फैलांऊ, 

परमाणु बमों के बलबूते जो आतंक़ फैलायें,

उन्हें शान्ति का पाठ पढ़ांऊ, 

दिल ये चाहे "शकुन" बच्चा बन जांऊ।


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