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Sunita Katyal

Abstract

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Sunita Katyal

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बच्चा बूढ़ा एक समान

बच्चा बूढ़ा एक समान

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मां मेरी अब बूढ़ी हो गई है

दिन में कई कई बार फोन कर मुझे बुलाती है

मुझसे मिल खुश हो जाती है

अगर उनके पास कोई और बैठा हो

मै उनसे बतियाने लगूं

तो 2-4 मिनट में ही मां उकता जाती है।


या तो मेरी बात काट 

अपना कुछ बताती है

या कहती है तुम्हें कुछ काम होगा

या जाओ तुम्हें देर हो रही होगी।


पहले तो मैं उनका व्यवहार

नहीं समझ पाती थी

पर अब समझने लगी हूं 

किसी ने सच ही कहा था

बच्चा बूढ़ा एक समान। 


मां मुझे अपनी ओर आकृष्ट करती है

वो चाहती है मै केवल उस से बात करूं

किसी और से नहीं

एक खास बात और

जाते ही पूछेंगी ठंडा लोगी या चाय।


खुद तो चल नहीं सकती

पर जबरदस्ती खिलाएंगी

पानी के साथ मीठा जरूर खिलाएंगी

जब कहूं मुझे सुगर है, मैं मीठा नहीं खाऊंगी

तो कहती है कुछ नहीं होता।


खाने पिलाने की जिद पर जब मैं कहती हूं

मां अब मैं भी तो 60 साल की हो रही हूं

अब मुझे हजम नहीं होता

तो गुस्सा हो जाती है।


मां अब जिदीयाती है

अब जल्दी ही रूठ जाती हैं

समझती है जैसे मै नखरे दिखा रही हूं

जानती हूं मैं, उनके बाद कोई

इतने अपनेपन से नहीं खिलाएगा,


पर क्या करूं मैं फिर भी

हर बात नहीं मान पाती हूं

मैं उनकी सब बातें अपने बच्चो को बताती हूं

कहती हूं अगर मैं इस उम्र तक जिंदा रही

तो ऐसे ही सब करूंगी।


आखिर बेटी हूं ना उनकी।


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