बात कुछ नई
बात कुछ नई
हवा के झोंको में मिट्टी की खुशबू आई
बारिश के आने का पैगाम वो लाईं
नजारे तो पहले भी देखे ऐसे कई
मगर इस बार है बात कुछ नई
मगर इस बार है बात कुछ नई
पल में यूं सूरज चमका, धूप गहराई
मानो धरा को जैसे पिली चुनर ओढ़ाई
खुशनुमा ये मौसम पहले भी देखे कई
मगर इस बार है बात कुछ नई
मगर इस बार है बात कुछ नई
बारिशें आई और गई, इतने बरसों में कई
धुला धुला सा ये जहान यूं तो वो करके गई
बूंदों का ये नशा, पहले भी तो था कई
मगर इस बार है बात कुछ नई
मगर इस बार है बात कुछ नई
शाम के परवाने में जाम जो टकराई
यारों ने यारों की बात है चलाई
महफिलों का ये समा पहले भी तो था कई
मगर इस बार है बात कुछ नई
मगर इस बार है बात कुछ नई
सुबह उठ के मैंने चाय जो बनाई
मन की ये चाशनी उसमें थोड़ी मिलाई
भोर की ये शबनमे, पहले भी तो थी कई
मगर इस बार है बात कुछ नई
मगर इस बार है बात कुछ नई
होंठों से लगी तो दिल में उतर आई
गलियारे में बैठ कर, दूर नजर लगाई
ख्वाहिशों के पन्ने पहले भी पलटे कई
मगर इस बार है बात कुछ नई
मगर इस बार है बात कुछ नई
आज की घड़ी है वो सुकून लाई
पूर्णता की चाबी है इसमें लगाई
रास्ते तो खुशनुमा पहले भी थे कई
मगर इस बार है बात कुछ नई
सच में इस बार है बात कुछ नई।
