बालपन बालपन.....
बालपन बालपन.....
बालपन बालमन जैसे चंचल पवन
संसार उसका जैसे उन्मुक्त है गगन
इतरा के चलती है इठला के चलती है
बचपन की हर अदा मुस्कुरा के
चलती है
रूठना मनाना पढ़ाना लिखाना साथ में
खेल खेल में संस्कारों की नींव डाल कर
पौधे को पेड़ बनाना पीढ़ी दर पीढ़ी
चलता है
पौधा पेड़ बन जग को छाया देगा या नहीं
यह तो उसकी परवरिश पर निर्भर करता है
किंतु उससे पहले यह भी तो जरूरी है कि
माली पौधे की मन की अवस्था को समझता हो
उसमें होने वाले परिवर्तन पर नजर रखता हो
तभी समाज को इक छायादार वृक्ष मिल पाएगा
नहीं तो रास्ते में अड़ने वाला ठूँठ बन रह जाएगा
बचपन कहीं खो न जाए दूर तुमसे हो न जाए
इसलिए बालक के साथ बालक बन मिलना होगा
उसकी सपनों की दुनिया में संग उसके चलना होगा
सही गलत बताना होगा आदर करना सीखाना होगा
संस्कृति से जोड़ उसे तुम्हें मित्र अपना बनाना होगा
बालक का विकास हो बेहतर इसके ख़ातिर
तुम को अपना रोल सही से निभाना होगा....