बालक
बालक
आज ही मिली तृप्ति मुझे
पहले कहां इसका कायल था
आज ही उठी उफान ह्रदय में
पहले इसे उठाने वाला कौन था !
आज ही जीवन को जीना सीखा
पहले मुझे जीने का कहां ढंग था
आज ही तो मुलाकात हुई प्रभु तुमसे
पहले मुलाकात कराने वाला कौन था !
आज ही समझा व्यथा को
पहले अवगत कराने वाला कौन था
आज दुनिया बदला उस बालक ने
पहले दुनिया देखने का कहां दम था !
अब हर एक सांस में प्रभु पाता आपको
पहले मुझे एहसास कराने वाला कौन था !
इसीलिए प्रभु कहता हूँ
था वह बालक तेरा प्रतिबिंब
जो सिखा गया मुझे ढंग
बस आ गया स्वच्छ मन !
अपने रंग बिरंगे भावनाओं से
देखता अब तुम्हें उम्मीद से
उसने ही कायापलट की मेरी
रंग भर गया जीवन में मेरी
इसलिए कहता हूं -
आज ही मिली तृप्ति मुझे
पहले कहां इसका कायल था !
