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Seema Mishra

Tragedy

4  

Seema Mishra

Tragedy

बाल मजदूर

बाल मजदूर

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मेहनत करते कुछ मजदूर बच्चों का

बचपन खो ही जाता है!

उम्र से पहले ही वो

बहुत बड़ा हो जाता है!

प्रात: उठता सबसे पहले

काम पे वो लग जाता है,

खिलने से पहले ही वो

बच्चा मुरझा सा जाता है!

जीवन में शिक्षा से दूर

पेट के लिए कमाता है!

चेहरे पर मुस्कान न आती

थककर वो सो जाता है!

त्यौहार न छुट्टटी मिलती

वो मजदूरी से राहत पाता है!

दो पैसों की मजबूरी में

बचपन डूबा जाता है!

लोहा, कांच, प्लास्टिक ढूडे़

कई मीलों चलता जाता है!

कभी बोझ ईटों का सिर पर

ढाबो पर बर्तन भी धोकर जाता हैं

दिन भर ग़्लानि, और दुखी

रात में सूखी रोटी खाता है!

ये मासूम फरिश्ते, क्यो

इनके जीवन में अंधेरा आता है

रखे सहानुभूति इनसे, वही धर्म है

चढ़ावा भी छोड़ दे,

ये मंदिरों में कहा जाता है!

खाना, कपड़े, खुशियाँ दे,

शिक्षा का मंदिर इन्हें भी भाता है

कुछ मेहनत, मजदूरी से ही

इनका जीवन ही छिन जाता है

चलो किसी एक की

हम जिंदगी सवार दें

खुशियों का काफिला

इनके पास आयेगा, मेहनत

तो करेगें ये, पर मजदूरी से

कुछ बच्चों का बचपन बच जायेगा!!


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