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Aarti Sirsat

Romance

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Aarti Sirsat

Romance

"बादलों के आँचल से"

"बादलों के आँचल से"

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बादलों के आँचल से वो 

बार बार झाँक रहा है...!

देखों वो आसमां का चाँद 

हमारे चाँद को सौ दफा ताक रहा है...!!


आँखों की हया का शर्माना

आँखों को ही नज़र लगा रहा है...!

आईने के सामने बैठे बैठे हमारा

मेहबूब सजने सँवरने लगा है...!!


चाहत का समा, चाहत 

को ही चाहने लगा है...!

बरसों बाद उसे देखकर

ये दिल फिर से घबराने लगा है...!!


दिल की अरदास को सुकून

देने वाला ही दर्द देने लगा है...!

ना हँसने देता है ना रोने देता है

गम देने वाला ही उदासी की वजह पूछने लगा है...!!


ख्वाबों में ही, ये दिल ख्वाहिशों

की दुनिया सजाने लगा है...!

साँसों की डोर को बांधकर

अब वो हमारी साँसों की 

सोदेबाजी करने लगा है...!!


दिल से टूटा हुआ है वो फिर भी

मौहब्बत की राहों से गुजरने लगा है...!!

पतझड़ में भी वो पंछी अपना 

आशियाना बनाने लगा...!!


   


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