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बाबा

बाबा

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कुछ होने में कुछ न होने का एहसास है

तेरे पास होकर भी नहीं तेरे पास मैं

सहसा खोली आज जो मैंने अपने बचपन की तिजोरी

लाखोँ यादों ने घेरा मुझे, कुछ तेरी कुछ मेरी


मेरे आ जाने के बाद दुनिया तुझे न भाती थी

इतनी छोटी थी कि तेरी हथेलियों में आ जाती थी

हथेलियों से घुटने और, घुटने से तेरे कंधे का सफ़र

कब बढ़ी हुई मैं बाबा, नहीं कुछ खबर


ज़्यादा ख़र्चों में थी कमाई छोटी छोटी

बाबा तेरी थाली में खाती मैं आख़री रोटी

उफ़नती ख़्वाहिशों को छुपाने की ताकत

देखी है मैंने भूख और प्यास छुपाने की वो आदत


स्कूल के पहले दिन जब, तू मेरा बस्ता तैयार करता था

रोती थी में बाबा, मुझे बहुत डर लगता था

तेरी गोद से न निकली मैंं, दुनिया में मेरा पहला कदम

अनजाने चेहरों से घबराई मैं तुझे ही ढूंढती हरदम


सहमी हुई उन आंखों से, तेरा उस डर को छानना

मुझे छोड़ देना अकेला फिर, चोरी से खिड़की से झांकना

चंद शाबाशियों के लफ्ज़ और हज़ारो नुकीली बातें

आज समझ आती हैं तेरी बार बार टोकने की आदतें


आवाज़ में कभी सख़्ती, तो उमड़ता था कभी प्यार

डराता था मुझे तू कभी, तेरी डाँट ... और तेरा दुलार

दुनिया की ठोकरों के बीच, जब में सुनती थी तेरी आवाज़

हिम्मतों से भर जाती थी, तू ही था मेरी परवाज़


चोटें लगने के बावजूद मुझे, गिरने का एहसास न था

तेरे सीख-लिहाज़ का कवच हमेशा मेरे पास था

बरसों एड़ियाँ घिसते हुुुए तूने, मेरा आज और कल संवारा

हर उस डूबते तिनके को तेरी आवाज़, आज भी है सहारा !


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