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दुनियादारी

दुनियादारी

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ज़रूरतें बदल जाने पर

इंसान की ज़ुबान बदल जाती है

लफ्ज़ बदल जाते हैं

दोस्ती यारी बदल जाती है

बदलता है लिहाज़ और

बदल जाती है फ़ितरत

नहीं बदलता कुछ तो वो है

उसकी आदत और नियत

कैसे कर लेते है लोग ये?

बिना किसी बोझ के आगे बढ़ जाते हैं!

इतनी आसान ज़िन्दगी होगी कहीं?

रोज़ खुद को आईने में देखते है 

और शर्म का नामों निशान तक नहीं!

रुई से ज़्यादा हल्का

धागे से ज़्यादा कमज़ोर

ये रिश्तों को समझ लेते हैं

उन्हीं रिश्तों पे पत्थर बाँध कर

फिर कुँए में धकेल देते है,

रात की भारी पलकों में

जब नींद ठिकाना ढूंढती है

कांच से बने इन लोगों की आहट

इन कानों में कर्कश गूंजती है

मन के मौजी होते है ये लोग

ज़रूरतों के मारे ही आते हैं

दोपहर में कुर्बान किये जानवर को जैसे

रात में नोश फरमाते हैं

नज़रन्दाज़ी की तो पूछिए ही मत

कितनी हद मचाई इन बेकदरों ने

रिश्तों का क़त्ल-ऐ-आम किया

फूल भी न गिराये उनकी कब्रों पे

प्यार कभी दोस्ती के नाम पर लूटा

इंसानियत पे बदनुमा दाग हैं

कभी उधर से गुज़रे तो दिखाएंगे

इस दिल की तिज़ोरी में आज भी सुराग है

बेपरवाह लुटाते थे प्यार के नाम पे

हम भी कुछ कम न थे

प्यार की स्याही में डूबा डूबा कर

खुद ही वो रिश्ते जो लिखे थे

इतना ऐतबार कहाँ से आता था

यह हम कभी न बूूूझ पाये

अब हमारी झोली खाली है

हमसे भी तो कोई पूछता जाये

खेल-ऐ-जंजाल में फसी इस रूह को

चैन-ओ-सुकून कहाँ से आएगा

दौलत तो फिर आ जायेगी

हमारा वक़्त कहाँ से आएगा

'ज़्यादा सोचो मत' कहते हैँ लोग हमें

कैसे न सोचें ये समझ से परे है

दिल से सींचे कमबख्त इस रिश्ते को

कैसे भुला दें, हमारी सोच के परे है

पर कुछ कुछ सीखतें हैं अब हम भी

बस दिल ज़रा कमज़ोर, ज़हन कुुुछ भारी है

वक़्त मिले तो आप भी सिखीयेगा जनाब,

ये आज की दुनिया है..यही दुनियादारी है!


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