Ahana archana pandey

Tragedy

4  

Ahana archana pandey

Tragedy

औरत

औरत

1 min
74


कहती है दुनिया अक्सर ये

विद्रोही बहुत है वो औरत

झूठी रश्मो में बाधित हो

धारी तलवार है वो औरत


जो शिक्षित और स्वतंत्र हो

अपवाद वही बन जाती है

जो शस्त्र उठा ले रण में वो

लक्ष्मी बाई कहलाती है


आँखो में रखे शर्म हया

लब पे हो अमृत के गोले

अन्याय सहे और मौन रहे

दुनिया ये उसकी जय बोले


जग का इस दस्तूर है ऐसा

अबला नारी का कौन हुआ

हो जाता शून्य वजूद है उसका

जब जब जो भी मौन हुआ


ये मूर्खो की बस्ती है साहब

यहाँ नागिन पूजी जाती है

पावन सुशील सिया नारी

दरिया में गोते खाती है


अधर्म के समक्ष झुकी जो नारी

कहलायी वो संस्कारी

जिसने पाप की हाड़ी फोड़ी

उस सी नहीं कोई दुराचारी


तर्क कुतर्क की चक्की में 

पिसती सदैव एक नारी है

ये रामयुग नहीं कलयुग है

औरत, औरत की वैरी है


सभी यातना, सभी ताड़ना

गुमसुम सी जो सहती है

औरत ऐसी परिभाषा है

शब्दों में बयां नहीं होती है


हाँ हूँ मैं एक विद्रोही सी औरत

बंधन मुझको स्वीकार नहीं

पक्षी भी पान्खे खोल रहे 

औरत को क्यों अधिकार नहीं


अहम की गठरी खोल दो अपने

राम से पूजे जाओगे

जो ना सुधरे तो सुन लो वहशी

कालचक्र दोहराओगे!


Rate this content
Log in

More hindi poem from Ahana archana pandey

Similar hindi poem from Tragedy