औरत
औरत
कहती है दुनिया अक्सर ये, विद्रोही बहुत है वो औरत
कु- प्रथाओं में बाधित हो, धारी तलवार है वो औरत
जो शिक्षित और स्वतंत्र हो, अपवाद वही बन जाती है
जो शस्त्र उठा ले रण में वो, लक्ष्मी बाई कहलाती है
नयनों में रखें लाज, हया, अधरों पे अमृत के गोले
अन्याय सहे और मौन रहे, दुनिया ये उसकी जय बोले
जग का इस दस्तूर है ऐसा, अबला नारी का कौन हुआ
हो जाता शून्य वजूद है उसका, जब- जब जो भी मौन हुआ
मूर्खो की ये बस्ती है , यहाँ नागिन पूजी जाती है
पावन सुशील सिया नारी, दरिया में गोते खाती है
अधर्म के समक्ष झुकी जो नारी, कहलायी वो संस्कारी
जिसने पाप की हाड़ी फोड़ी, उस सी नहीं कोई दुराचारी
तर्क कुतर्क की चक्की में, पिसती सदैव एक नारी है
ये रामयुग नहीं कलयुग है, औरत, औरत की वैरी है
जहाँ देवी रुप में पत्थर की प्रतिमा भी पूजी जाती है
उस मही पे नारी की गरिमा भी शून्य शून्य हो जाती है
सभी यातना, सभी ताड़ना, गुमसुम सी जो सहती है
औरत ऐसी परिभाषा है, शब्दों में बयां नहीं होती है
न समझो तुम उसको अबला उसकी शक्ति का ठौर नहीं
सम्मान भक्ति से मौन धरे उसकी अभिलाषा और नहीं
जब सुकृत्य पर कुकृत्य का जब जब रुप प्रबल होगा
तब हर नारी चंडी होगी और उसका रुप सबल होगा
तब मौन धरा कंपित होगा फूट ज्वाला बन ये डोलेगा
तब धर नारी का रौद्र रुप फिर महाकाल भी बोलेगा
हूँ मैं एक विद्रोही सी औरत, बंधन मुझको स्वीकार नहीं
पक्षी भी पंख खोल रहे, औरत को क्यों अधिकार नहीं
अभिमान की गठरी खोल दो अपने, राम से पूजे जाओगे
जो ना सुधरे तो सुन लो वहशी, कालचक्र दोहराओगे