अस्तित्व
अस्तित्व
पायलों का बजना
चूड़ियों का खनकना
बस यहीं तक तो नहीं
औरत की वजूद का होना
हवाई जहाज जो उड़ाया
रेल का पहिया मोड़ा
हिम्मत है उसमें बड़ी
हर मुश्किल काम कर दिखाया
अंतरिक्ष पर पैर जमाये
डुबकी लगायी समंदर में
पूरे विश्व की सैर की
बिना डरे, बिना झुके
औरत है शक्ति का रूप
कभी छाँव तो कभी धूप
सम्मान के लिये सदा लड़ती
खुद को ढालती युगानुरूप
कितना उसे निचोड़ोगे
और कितना ही कोसोगे
जलाकर सपनों को यूँ ही
क्या अस्तित्व उसका अब मिटा दोगे ?