अर्धनारीश्वर
अर्धनारीश्वर
अनंत काल से विद्यमान
अस्तित्व उभयलिंगी का
कलयुग में भोगते
क्यों अनचाहा व्यवहार
अलिंगी देह ढोते तो क्या
सम्मानित जीवन उनका अधिकार
ताली पीटते...दुआएं बाँटते
किन्नर अपना मुस्तक़बिल तलाशते
क्यों ना अर्धनारीश्वर स्वरूप को
हम भी करें सहर्ष स्वीकार
क्यूँकि
अब ईश्वर के अनुकम्पा से
पाया उन्होंने अमृत कलश
मिल गया...हमारी तरह
सम्मानित नाम और पहचान
