अपूर्ण
अपूर्ण
शोरगुल बहुत था,
कम करनेकी ही इच्छा थी,
अचानक सब बंद हो गया,
अब तो शुरू करने का ही प्रयास है।
भगदड़ बड़ी लगी रहती थी,
अवकाश की बड़ी मनोकामना थी,
अब बस अवकाश ही अवकाश है,
तब समझा भगदड़ में ही जीवन है।
आशाएं एवम् इच्छाएं बहुत थी,
पूरी न होने की शिकायतें भी लगी रहती थी,
अब सब पूर्ण हो चुकी है,
तो समझे है कि अपुर्णता से ही
ज़िन्दगी की खुमारी है।