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Dr. Riya Patel

Others

5.0  

Dr. Riya Patel

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जीवन-पुस्तिका

जीवन-पुस्तिका

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ज़िन्दगी की किताब थी हमारी,

जैसी सबकी होती है;

हर कागज़ खुशाली से भरा,

वैसा सबका ना होता है।


हर पन्ने पर सुनहरी स्याही थी,

देखकर जी बडा इतराता था,

फिर एक तुम्हारा अध्याय आया,

जो पढने से भी जी कतराता था।


आखिर तुम्हे दिल तोड़ना ही था,

पास बुला के दूर जाना ही था;

जो चाहते थे वो हँस के मांग लेते,

दिल दिया था, जान देने का वादा भी किया था।


अब वो पन्ने फाड़ भी नहीं सकते,

जीवन की किताब का ये नियम नहीं;

तुमसे मुँह मोड़ लिया है,

पर यादो के बिना जीवन ही नहीं।


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