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Archana Saxena

Abstract

4.0  

Archana Saxena

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अप्रैल फूल

अप्रैल फूल

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वो फूल फूल हमें कहते रहे

हम फ़ूल समझ मुस्काते रहे

ताज़िन्दगी हमें पता न चला

वह अप्रैल फूल बनाते रहे


बेला गुलाब चम्पा न सही

अरे गोभी ही हमें बता देते

हमसे करवा कर खुद से इश्क

वो मूरख हमें बनाते रहे


जब आज समझ में आया हमें

तो हमने भी था धमकाया

हम तो आपे से बाहर थे

रख कानो पे हाथ मुस्काते रहे


इस हरकत से गुस्सा था बढ़ा

हमने पटके बर्तन दो चार

वो बिन बोले ही एक शब्द

गिरे बर्तन फिर से जमाते रहे


जब गुस्सा मेरा ठंडा न हुआ

चले आये मनाने फिर इक बार

हम सुनने को तैया

र नहीं

वो तर्क पे तर्क दिये जाते रहे


और तर्क भी कैसे सुनो मित्रों

अरे फूल ही तुम्हें समझता हूँ

इंग्लिश हिन्दी में फर्क ही क्या

वो बार बार समझाते रहे


अब इतनी भी अनपढ़ मैं नहीं 

इंग्लिश का फूल नहीं समझूँ

बस थोड़ी सी भोली हूँ मैं

वो बुद्धू मुझे बनाते रहे


सब एक अप्रैल को मनाते हैं

वह एक महीने मना लेते

पर वो तो मुझे जिन्दगी भर

बस फूल पे फूल बनाते रहे


उनसे अब शिकवा करें तो क्या

अरे हम ही थे नादान बड़े

हम खुद पर ही इतराते रहे

वो अप्रैल फूल बनाते रहे!



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