अपनी मौज का परिंदा
अपनी मौज का परिंदा
टूटे हुए परो का परिंदा हूं
अपनों से बड़ा शर्मिंदा हूं
जख़्म खाये,हंस-हंसकर,
आंसू बहाकर भी जिंदा हूं
बहुत रक्तवर्णित जज़्बात है,
तपती रेत पे सोया परिंदा हूं
टूटे हुए परो का परिंदा हूं
अपनों से बड़ा शर्मिंदा हूं
धूल से ज़्यादा गंदा मन है,
करता न किसी की निंदा हूं
लोगो से क्या लेना-देना है,
अपनी मस्ती का आईंदा हूं
सबने अपना कहकर लूटा,
रिश्तों का सताया पुलिंदा हूं
टूटे हुए परो का परिंदा हूं
अपनों से बड़ा शर्मिंदा हूं
टूटे पर होकर छुउंगा नभ,
अपने होंसलों से जिंदा हूं
किसी से डरता नही हूं,साखी
रिश्तों का भावुक गोविंदा हूं
टूटे हुए परो का परिंदा हूं
अपनों से बड़ा शर्मिंदा हूं
व्यर्थ-रिश्ते बेड़ियां तोड़ दूंगा,
अब से रिश्ते रखूंगा चुनिंदा हूं
कोई कुछ कहे फर्क न पड़ता,
में अपनी मौज का परिंदा हूं।