STORYMIRROR

anuradha nazeer

Abstract

3  

anuradha nazeer

Abstract

अपने लिए

अपने लिए

1 min
223

रात भर बारिश बरस रहे थे 

मेरा दिल ढूंढ रहे थे बे इमानी तुम्हें

 

तेरी तलाश में तालाब रहे थे 

अब चूर चूर हो मैंने बहुत थक गया 


नींद ना आपाया 

 सवेरा भी हो गया है 


अभी, आज भी मेरा दिल

ढूंढ रहेगा तुम्हें

तुम कितना कटूर हो

बेपरवाह


फिर भी लाजवाब हो

मेरे लिए इस धरती पर

अब भी औषधि है तुम

अपने लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract