"अपना सत्य तू पहचान"
"अपना सत्य तू पहचान"
अपने सत्य को तू पहचान
क्यों भटक रहा, तू इंसान
कोई नहीं यहाँ अपना है
यह जग झूठा सपना है
अपनी रोशनी को तू जान
सब जगह छिपे है, शैतान
दिखावा कर रखा है, ऐसा
झूठ लग रहा, सत्य जैसा
आईने में कैद है, जहान
छद्मता से तू है, अनजान
कस्तूरी मृग सा ना भटक
ओ भोले, नादान तू इंसान
ज़रा अन्तः पर्दा हटा देख,
भीतर ही मिलेगा भगवान
खुदी को लगा जब पहचान
न होगा फिर तू परेशान
खिलेगा फिर रेगिस्तान
जब बनेगा स्व-सुल्तान
शूल भी लगेगा तुझे फूल,
जब लेगा सच-पहचान
सब मोह-माया बंधन है
बालाजी भक्ति चंदन है
बालाजी से रिश्ता मान
बाकी सब स्वार्थ खान
क्या माता-पिता, भाई
क्या पत्नी, पुत्र, सखा
सब स्वार्थ के बस थान
दुःख वक्त सब भागते है,
रह जाते है, बस निशान
अपने सत्य को तू पहचान
बालाजी ही देंगे, मुस्कान
बस उन्हें ही अपना मान
बाकी सब, स्वार्थी इंसान
उनकी भक्ति से कर पायेगा,
भीतर छिपा अमृतपान
न तुझे ज़रा सताएगी,
न तुझे मौत डराएगी,
जो बालाजी का लेगा नाम
तेरा हो जाएगा कल्याण
जन्म-मरण छूट जाता है,
जो बालाजी शरण जाता है,
जपता रह रात-दिन हनुमान
जरूर आएंगे तुलसी भगवान
लोग कहते कलियुग में उन्हें,
एकमात्र जिंदा भगवान
सांस-सांस में उन्हें बसा ले,
जीवन होगा कमल समान।