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Dinesh Dubey

Abstract

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Dinesh Dubey

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अपना शहर छोड़कर

अपना शहर छोड़कर

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अपना शहर छोड़कर 

कहां जायेंगे,  

यहां की गलियां यहां के चौराहे 

बहुत याद आयेंगे,

कुछ पुरानी यादें, पुराने किस्से

कैसे भूल पाएंगे,


पुराने मित्रों की टोली 

वह हंसी ठिठोली,

सुबह की मॉर्निंग वॉक 

और दुनिया भर की टॉक 

कैसे भूल पाएंगे 


बहुत मजबूरी में छूटता है 

अपना शहर,

जब टूटती है किसी की कमर 

हो जाते है दर बदर,

तो काम आते हैं अपने ही

शहर के लोग,

कैसे जा सकता है कोई 

अपना शहर छोड़कर।


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