अपना चेहरा ढूंढता हूँ
अपना चेहरा ढूंढता हूँ
दुनिया-भीड़ में अपना चेहरा ढूंढता हूं
हजार शीशों में अपना मुखड़ा ढूंढता हूं
जन्म के समय जो वास्तविक चेहरा था,
वो पुराना मासूम,नादान चाँद ढूंढता हूं
वक्त के साथ,चेहरे ने खूब रंग बदले है,
जिंदगी का खोया वो टुकड़ा ढूंढता हूं
दुनिया-भीड़ में अपना चेहरा ढूंढता हूं
नित-नये आंसुओ से,चेहरा ढूंढता हूं
बचपन का वो चंचल,नटखट,चेहरा,
जिसमे बनावट का न था कोई सेहरा,
वो बचपन का सच्चा आईना ढूंढता हूं
बचपन का वो खोया हीरा ढूंढता हूं
जब आई हमारे इस चेहरे पर जवानी,
पेड़ की हर डाली लगने लगी मस्तानी,
जवानी का वो रोशन दीया ढूंढता हूं
दुनिया-भीड़ में अपना चेहरा ढूंढता हूं
जब हुई शादी,आई कुछ समझदारी,
इस समझदारी में आई,वो जिम्मेदारी
शादी के बाद आजाद चीता ढूंढता हूं
अपना खोया सुनहरा दौर ढूंढता हूं
जब हो गये हमारे भी कुछ बाल- बच्चे
लगा की,हमने भी झंडे गाड़ दिये अच्छे
पिता बनने पर अपनी छाया ढूंढता हूं
दुनिया-भीड़ मे अपना चेहरा ढूंढता हूं
जब हुई हमारे बाल- बच्चों की शादी,
लगा,जिम्मेदारी की पूरी हुई आबादी,
कुछ वक्त बाद अपनी लाठी ढूंढता हूं
पोता-पोती शक्ल मे,बुलबुला ढूंढता हूं
अब जब आ गई,हमारे बुढापे की बारी,
बेटे ने,घर-बाहर की दिखाई चारदीवारी,
बुढापे में वृदाश्रम का वो घर ढूंढता हूं
दुनिया-भीड़ में अपना चेहरा ढूंढता हूं
जब अपना हकीकत का चेहरा मिला,
तब तक न तन बचा,न कोई धन बचा,
अब अपने चेहरे में वो श्रृंगार ढूंढता हूं
इस बूढ़े चेहरे में वो झूठा जग ढूंढता हूं
अब आंख खुली तो बहुत देर हो गई,
अब टूटे हुए दर्पण में चेहरा ढूंढता हूं
चेहरा इसमें दिख भी गया तो क्या?
अब तो मौत के बाद,मौत ढूंढता हूं
इस बनावटी चेहरे को अब तोड़कर,
जन्म का वो मासूम चेहरा ढूंढता हूं
दुनिया-भीड़ में अपना चेहरा ढूंढता हूं
सारी उम्र खोकर सही चेहरा ढूंढता हूं।