अनुराधा कुमारी
अनुराधा कुमारी
बार बार क्यों रुलाते हो अपना बना के।
जब रुलाना ही था तो दोस्ती कबूल ही क्यों किया।
हम खुद ही मान जाते है तो क्या हमें दर्द नहीं होता।
छोड़ना होता तो कब न छोर दिया होता।
दोस्ती का हाथ पहले बढ़ाया हमने ही था।
सच सच बता दो आज की मैं तेरे लिए क्या हूँ।
अगर कोई फिक्र नहीं तो दूर चले जाएंगे
हजारों चेहरा मिलेगा पर हम नहीं मिल पाएंगे।

