अनुपम अलंकार
अनुपम अलंकार
जी करता है तेरी जुल्फ की घनी छांव में छुप जाऊं
बन के काली घटा यूं बरस के सफेद सी धुल जाऊं,
हरदम रहूं साथ तेरे,आंचल के गोटे सी चिपक जाऊं
मस्त मगन नदिया की मौज सी तुझ में समा जाऊं,
नज़र मिलते ही जो झुका चेहरा ये नज़ाकत भा गई,
तेज़ धड़कन जो मध्यम हुई ये दिलकशी भा गई,
रेशमी दुपट्टे की झालर मदमस्त हवा में उड़ी इस क़दर
मुझे झीने परदे से तेरा गुलाबी दीदार करा गई,
काश में काजल होता तेरे नैनों में सूरमा बन बसता
होता कंगन तो हाथों में लाल हरा खन खन खनकता
पायल के घुंघरू बन पग पग साथ छन छन छनकता
होता जो इत्र चंदन का तो तुझ में तुझ संग महकता,
ये सभी हल्के हैं तेरे सामने, तु स्वयं एक उपमा है
ना तुलना ना भेद किसी से ईश्वर की पावन रचना है
है जादू अनोखा तेरा जिससे मैं हर्षित आकर्षित
तू अनुपम अलंकार है…तू अनुपम अलंकार है।