अन्तर्मन
अन्तर्मन
हँसता है ये आसमाँ, बेगानी सी है ये जमीं
कहता है ये अन्तर्मन, क्यूँ हूँ मैं अब भी यहीं
क्या है लिखा तकदीर में, है क्या जिंदगी मंसूबे तेरे
प्रतीत होता चिरकाल तक, दोहराना चाहे तू किस्से मेरे
हर गली में तेरी हुकूमत, हो रही मुझे बहुत फ़िक्र है
हर मोड़ पर यही जिक्र है, हर कोई तेरा यहाँ मित्र है
हँसता है ये आसमाँ, बेगानी सी है ये जमीं
कहता है ये अन्तर्मन, क्यूँ हूँ मैं अब भी यहीं
पल पल सिमटती जा रही थी बहती हुए सी एक नदी
आयी फिर लहरों में उड़ान, लगी पुनः बारिश की झड़ी
हटा के सारी खरपतवार , नाप लूँ मैं फिर से घर द्वार
शायद सही वक्त यही, करने को फिर से द्वंद एक बार
रुकी नहीं हूँ मैं भी कभी, जोंक की भांति चिपकी रहूँगी सदा
हर तूफानों से लड़ जाऊँगी, कर कोशिश लगा तू मेरा पता.