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Ritu Garg

Abstract

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Ritu Garg

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अंतर्द्वंद

अंतर्द्वंद

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अंतर्द्वंद


भावनाओं का उदय है 

या अंतर्द्वंद की व्यथा

खुद में सिमटे हुए हैं 

खोज रहे हैं राह।


अपरिमित कलेश भी

कर रहा कोहराम

उद्विग्न हो रहे हम

ढूंढ रहे हैं छांव।


बिगुल बज रहा 

हर्ष और उन्माद का

तांडव हो रहा

अंतर्मन में अंतर्द्वंद का।


प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष बन

आंखों से ओझल हो रहा

प्रकाश भी तिमिर बन

आसमां में खो रहा।


सुबोध का ज्ञान अगम्य

लग रहा अनावृष्टि सा

हिमपात की छाल ओढ़

पर्णकुटीर में सो रहा।


दुखी हो भीगे नयन

अंतर्मन की व्यथा कह रहे

अंतर्द्वंद जब तक रहेगा

मानव निर्मल कैसे रहेगा।


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