अनसुनी सांसें
अनसुनी सांसें
कुछ ख़ामोश कुछ बोलती हैं
यह अनसुनी सांसें सच बोलती हैं
कुछ राज़ गहरे दबाये हुए दिल में
यह सांसें दिलों के भेद खोलती हैं।
मेरी लौ में जलकर
सब हो गए हैं मुझसे
बस इश्क़ करने को तुझसे
पंक्तियों में जाने कब से
आ खड़े हुए हैं फ़रिश्ते।
यह इंसान का चौला
क्या रिझायेगा अब तुझको
फरिश्तों की महफ़िल में
इंसानियत भी अब डोलती है।
कुछ ख़ामोश कुछ बोलती हैं
यह अनसुनी सांसें सच बोलती हैं
कुछ राज़ गहरे दबाये हुए दिल में
यह सांसें दिलों
के भेद खोलती हैं।
आओ मिल जाये हम दोनों
उन बारिश की बूंदों से
जहाँ जमीं आसमान भी
मिल जाते है क्षितिज से,
दो लहरों के जैसे
दो पहाड़ों के जैसे
यह बारिश की बूंदें
नदियों में जो गिरी है
इन्हीं बूंदों से सागर की सीप में
यह बून्द मोती बनी है
तेरी सुराहीदार गर्दन में
यह माला बहुत फबती है।
कुछ ख़ामोश कुछ बोलती हैं
यह अनसुनी सांसें सच बोलती हैं
कुछ राज़ गहरे दबाये हुए दिल में
यह सांसें दिलों के भेद खोलती हैं।