अन्नू
अन्नू


दस साल की अन्नू
जितना छोटा नाम
उतनी छोटी काया
समाज की नजरों से
लड़की होने की किसी भी
कसौटी को पार नहीं कर पाती है
तुतलाती है
गहरी श्यामा
कमजोर सी
ठीक से देख भी नहीं पाती है
मासूम है
निरपराध है फिर भी
रोज़ सजा पाती है
अपने मन की बातें
बताने को सदैव आतुर
पर कोई सुनता नहीं
तो चुप हो जाती है
फिर भी बताती है कि
माँ उसे मर जाने को कहती है
बीमार होने पर भी
इलाज को तरसती है
किसी से कुछ नहीं कहती
टुकुर -टुकुर देखती रहती है
कुछ पाना चाहती है
पर नहीं जानती क्या
दमन उसके चेहरे से
उसके अस्तित्व पर
हावी हो रहा है
विवशता
व्यथा
लाचारी को जी रही है
इसी तरह वो बढ़ रही है
इक्कीसवीं सदी में
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
के नारे सुन तर रही है
जिस प्रदेश जिस घर में
वो पल रही है
वहां ये नारे बेमानी हैं
ये लोग दूसरों का दुख सुन
रो पड़ते हैं
फिर अपनी बेटी को कोसने
चल पड़ते हैं
अनु बड़ी हो जाएगी
तब शायद
अपना दर्द बता पाएगी
या शायद नहीं भी
कभी भी इक्कीसवीं सदी का
जीवन जी पाएगी
या मन मार कर ही रह जाएगी..