अंजाम-ए-इश्क़
अंजाम-ए-इश्क़
अपने इश्क़ का मैं इक अंजाम चाहती हूँ,
तेरी बॉहों में मैं हर शाम चाहती हूँ।
जो अश्क बहतें हैं तेरी चाह में,
उन आँसुओं के लिये मैं
तुम्हारा ही रूमाल चाहती हूँ।
बेसब्र हो रही है अब मोहब्बत मेरी,
तेरे ही पहलू में मैं अब
देना अपनी जान चाहती हूँ।