अंहकार ( दोहे )
अंहकार ( दोहे )
सब हैं अपने जानिए, रख अच्छा व्यवहार।
चींटी से भी सीखिए, बाँटें खा आहार।।
झुककर सज़्ज़न तो चले, रखते जन का मान।
फिर भी देखो आदमी, करता है अपमान।।
फूल फल से झुकी हुई,बन तरुवर की डार।
सूखा तरुवर सा लगे, मनुज का अंहकार।।
अंहकार में देखिए,मिलता उनका अंश।
दूर हो जाते जहाँ, रिस्ते नाते वंश।।
पलट इतिहास देखिए, रावण,कौरव कंस।
बगुला तो बगुला रहे,मिटता नकली हंस।।
अंहकार जन जो करें, समझो हैं नादान।
ओथर कूप बना यहाँ, इतराता इंसान।।
अंहकार की भावना, रखकर चलते लोग।
शुभ घड़ी मिली नहीं, जैसे कौरव योग।।
समझें खुद को सभी, अपने भीतर देख।
मनुज जग के कर्मो का, मन से निकाल लेख।।
जीना जब ख़ुशहाल है, क्यों करता अभिमान।
छोड़ दें लघु विचार को, तुझे मिलेगा मान।।
अंहकार लघु सोच है, मिट जाए सम्मान।
घर बाहर में देखिए, खो जाती है शान।।
विनम्रता जो रखे चला, मधुर बना व्यवहार।
जन-जन करते जानिए, दुनिया में सत्कार।।
