कविताशांति की खोजकोलाहल भर
कविताशांति की खोजकोलाहल भर
कविता
शांति की खोज
कोलाहल भरा मन में
यहॉं-वहॉं ढूॅंढते घर में
बैचेनी देख आवाज आई
क्या खोज रहा है भाई ?
जबाब दिए शांति
अच्छा खोज रहे हो शांति
बाहरी संसार में
इंसानों के घेरे में
दूरभाष के फेरे में।
खोजते हो शांति
भगवान के द्वारों में
पर्वत,पहाड़ी,गुफाओं में
बाग-बगीचा क्यारियों में
मिल नहीं सकती तुम्हें
जंगल और पहाड़ में
खोज रहे हो शांति
घर-परिवार,समाज में
गली,सड़क मैदान में
नहीं मिल सकती तुम्हें
इन स्थानों में।
खोज रहे हो शांति
ऊॅंचे-ऊॅंचे महल-मकान में
स्वादिष्ट व्यंजन,पकवान में
गाड़ी, मोटर,बंगला, कार में
हीरे-मोती,सोना चॉंदी की
दुकान में
मिल नहीं सकती तुम्हें
जवाहरातों में
खोज रहे हो शांति
बाग-बगीचा खेत-खलिहानों में
नदी-नाले, कुआँ, तालाबों में
दिखावटी सौन्दर्य,चकाचौंध में
सुंदर नारी और मदिरालय में
नहीं मिल सकती इन चीजों में।
खोज रहें हो मुझे
देश-विदेश की सड़कों में
आकाश-पाताल,और ब्रम्हांड में
सूर्य-चंद्रमा सारे आसमान में
नहीं मिल सकती तुम्हें
इन स्थानों में।
पाना चाहते हो मुझे
देखना चाहते मुझे
कहाँ है मेरा घर
रहती हूॅं जहाँ निडर
अपने ही अंदर खोजों मुझे
एक क्षण में तुम्हें मिल जाऊँगी
तुम्हारे मन में मुस्कुराऊॅंगी
प्रत्येक हृदय में पड़ी हुई हूॅं
हर प्राणी के पास हूॅं
पर करता कोई सम्मान नहीं
आदमी और मेरी मित्रता नहींं
मिल नहीं सकती तुम्हें
जहाँ मेरी चाह नहीं।
तुम्हें चाहत है ईर्ष्या-द्वेष से
काम,क्रोध, लोभ,मोह से
है पास तुम्हारे अभिमान
दिखावटी है शान
आसमान से नीचे उतरना
लालच को आज छोड़ना
चौरासी लाख योनियों के
बाद मिला संसार।
फिर होगा परिचय हमारा तुम्हारा
बनेगें मित्र यहाँ हम, तुम
तेरे पास हूॅं सदा साथ हूॅं
तू मुझे पहचान ले
धैर्यपूर्वक काम ले
"संतोषं परम सुखम्" जान ले
मिलेगी शांति मान ले
रहेगी सदा पास तेरे
अगर तू ठान ले
शांति को पहचान ले।