जीवन एक संघर्ष समर जगत
जीवन एक संघर्ष समर जगत
समर जगत में जो करें, होती उनकी जीत।
जीवन से लड़ते यहाँ,गाते हैं वे गीत।।
रवि सा बनते देखिए,करते हैं जो कर्म।
परिश्रम तपन का यहाँ,समझे जो हैं मर्म।।
बनाते हाथ में यहाँ, अपनी खुद तकदीर।
बदले अपना जानिए,भाग्य की वह लकीर।।
देख बनाकर जो बढ़ें, अपनी जीवन राह।
राहों से काँटें हटा,फूलों की रख चाह।।
सीढी़ में चढ़ते हुए,एक एक रख पैर।
करते मंजिल में वहाँ, आसमान की सैर।।
उड़ान नभ में कीजिए,साहस के रख पंख।
सुकर्म से मिलता जहां, उठें बजाऍं शंख।।
सरि सा बहते जाइऍं,राह रोंक पाषाण।
नया पथ बनाते चलें,चल कर जग कल्याण।।
जलने जो घबरा गया,जानो होगी हार।
मन साहस से देखिए,नैया होती पार।।
फल लगते हैं सोचिए,झुकती है जो डाल।
फूल कभी आते नहींं, घमंड नर जो पाल।।
तरुवर सा नर चाहिए, आते परहित काम।
फूल-फल को चखे नहीं, बाॅंटते चार याम।।
पाठ कर्म का सीखिए,यह है सबसे नेक।
आलस्य बुराई बड़ी,आज अभी तू फेंक।।
