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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

अंदर कुछ,बाहर कुछ है

अंदर कुछ,बाहर कुछ है

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आजकल अंदर कुछ, बाहर कुछ है

आईने के भीतर कुछ, बाहर कुछ है

जिस्म के भीतर रूह तो मर गई है,

बाहर मनुष्य, भीतर जानवर प्रविष्ट है


ये ज़माना न जाने कहाँ जा रहा है,

बाहर से फूल, भीतर रखते शूल है

आजकल अंदर कुछ, बाहर कुछ है

ख़ुदा ही जाने, इंसानो के बहाने


ऊपर से उजला, भीतर कृष्ण पूँछ है

लोगो के मन, हो गये आज दुष्ट है

बाहर से मधुर, अंदर कड़ुआ मुख है

कैसे-कैसे आज गन्दे लोग हो गये है


बाहर बताते सच, भीतर भरा झूठ है

आजकल अंदर कुछ बाहर कुछ है

ये गंदे लोग, लगा रहे है राजभोग

बाहर से स्वर्ण, भीतर धतूरा पुष्ठ है


ख़ुदा कैसे इनको माफ कर देगा,

नाम ले उसका, कर रहे उसे रुष्ठ है

वो पत्थर भी एकदिन टूट जायेंगे,

जो बाहर से अच्छे, भीतर से दुष्ट है


उनका अपना कोई पास न होगा,

जिनके दिल में पाप बेइंतहा प्रविष्ट है

आजकल अंदर कुछ बाहर कुछ है।


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