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Rajkumar Jain rajan

Inspirational

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Rajkumar Jain rajan

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अंधकार के बीज

अंधकार के बीज

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ज्योतिपर्व पर 

जला रहे हो पीड़ा के दीप

लील चुका है तम

परम्परा, संस्कृति और संस्कार


ज्योति - पर्व के अस्तित्व बोध में

अंधकार से लड़ना चाहते हो

तो आओ

जला लो अपने भीतर की मशालें

संजो लो अंतर्मन में 

अस्तित्वबोध का दीप


मन मे जब जलती हैं मशालें

तब खुद ब खुद बदलने लगती हैं

इतिहास की इबारतें

कटने लगती है संम्वेदना

की फसल

अपने अभिमान में खण्ड -खण्ड

होते आदमी हो तुम

समय की चित्र फलक पर

गलत तस्वीर मत खींचो

ज्योति पर्व पर 

अंधकार के बीज मत बोओ

तुम्हारे भीतर 

एक सर सब्ज़ बाग है

उसे सींचो

जो प्रकाश मौन और 

म्लान हुआ है

देवदूत की तरह

अंधकार को काटो


तुम पर समूचे भविष्य की

आस्था है

और जिंदगी

महज़ अंधरे का

घोषणा - पत्र नहीं

रूप है, रस है,गन्ध है,

उजास है

आदमी आत्मा का छंद है।



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