अनाहूत किसी के द्वारे पर...
अनाहूत किसी के द्वारे पर...
काल का ग्रास बनाने के लिए, नहीं काल निमंत्रण चाहता है ।
अनाहूत ही जीव को लेने, यम का दूत चला आता है ।
जिंदगी-मौत का नश्वर जग में, अटूट,अटल रहा नाता है।
किस पल आन दबोचे काल, इंसान सँभल नहीं पाता है ।
गाफिल इंसान रहे निर्भय मौत से, गफलत में धोखा खाता है ।
अनाहूत मौत खड़ी देख द्वारे, फिर रोता और चिल्लाता है।।
बुद्धजीवी इंसानों को एक, सिद्धांत समझ आना चाहिए ।
जीवन पथ पर कुछ बातों को, अमल में नित लाना चाहिए ।
अनाहूत किसी के द्वारे पर, कभी भी जाना न चाहिए ।
मान-सम्मान बिन सोचे-समझे, मनमत में गँवाना न चाहिए ।
बिना निमंत्रण कद्र न रहती, स्वाभिमान कायम रखना चाहिए ।
समझदार को इस नुक्ते का, जीवन में पालन करना चाहिए ।।
सदगुरु,ईश्वर,संत के दर पर, जाने का गर बने विचार ।
बिना निमंत्रण ही जा पहुँचे, निमंत्रण का न करें इंतजार ।
हर प्राणी के लिए हमेशा, खुला रहता इनका दरबार ।
अनाहूत द्वारे पर जो जाए, कृपा का हो जाता हकदार ।
बिना निमंत्रण वह जा सकता, जिसने तजा मन से अहंकार ।
हस्ति को मिटाने वाला 'निराला',हो सकता भवसागर पार।
