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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

अनाहूत किसी के द्वारे पर...

अनाहूत किसी के द्वारे पर...

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काल का ग्रास बनाने के लिए, नहीं काल निमंत्रण चाहता है ।

अनाहूत ही जीव को लेने, यम का दूत चला आता है ।


जिंदगी-मौत का नश्वर जग में, अटूट,अटल रहा नाता है।

किस पल आन दबोचे काल, इंसान सँभल नहीं पाता है ।


गाफिल इंसान रहे निर्भय मौत से, गफलत में धोखा खाता है ।

अनाहूत मौत खड़ी देख द्वारे, फिर रोता और चिल्लाता है।।


बुद्धजीवी इंसानों को एक, सिद्धांत समझ आना चाहिए ।

जीवन पथ पर कुछ बातों को, अमल में नित लाना चाहिए ।


अनाहूत किसी के द्वारे पर, कभी भी जाना न चाहिए ।

मान-सम्मान बिन सोचे-समझे, मनमत में गँवाना न चाहिए ।


बिना निमंत्रण कद्र न रहती, स्वाभिमान कायम रखना चाहिए ।

समझदार को इस नुक्ते का, जीवन में पालन करना चाहिए ।।


सदगुरु,ईश्वर,संत के दर पर, जाने का गर बने विचार ।

बिना निमंत्रण ही जा पहुँचे, निमंत्रण का न करें इंतजार ।


हर प्राणी के लिए हमेशा, खुला रहता इनका दरबार ।

अनाहूत द्वारे पर जो जाए, कृपा का हो जाता हकदार ।


बिना निमंत्रण वह जा सकता, जिसने तजा मन से अहंकार ।

हस्ति को मिटाने वाला 'निराला',हो सकता भवसागर पार।



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