अमर शहीद कप्तान विक्रम बत्रा
अमर शहीद कप्तान विक्रम बत्रा
जिंदगी की हर चुनौती से मैं डटकर टकराऊँगा ,
की अपना कर्तव्य पूरा किए बिना मौत भी आ गई
तो उसे भी उसकी कब्र में दफनाउँगा ,
फौजी हूँ या तो शान से तिरंगे को लेहराऊँगा ,
या फिर उसी तिरंगे की शान से नवाज़ा जाऊँगा ।
जब आऊँगा तो या तो तू मुझे या फिर मैं तुझे गले लगाऊँगा ,
अगर जो तूने लगाया गले तो मैं याद बन जाऊँगा ,
दिलों में ही सही मगर आबाद बन जाऊँगा ,
जब याद आऊँ मैं तो होना खड़े आईने के सामने क्षणों में ही तेरे सामने आऊँगा ,
कभी खयालों तो ख्वाबों में आकर तेरी यादों को सजाऊँगा ।
ना निभा सका जो बेटे भाई और पति का धर्म वो
अगले जन्म में निभाऊँगा ,
मगर हर बार देश धर्म को ही सबसे ऊँचा बतलाऊँगा ,
मेरे आने की उम्मीद ना चोद्ना मेरे भाई ,
इस बार नहीं तो अग्ली बार सही
मगर ये वादा रहा
मैं लौट कर ज़रूर आऊँगा । ।
मैं लौट कर ज़रूर आऊँगा । ।
एक फौजी के रूतबे से बड़ा और कोई रुतबा कहीं नहीं ,
मेरे जाने के गम में ही डूबे रहो ये तो सही नहीं ,
मैनें कहा ना मैं आऊँगा ,
इसलिए याद रखना
देश के लिए ना बहाया लहू का एसा कोई कतरा नहीं ,
अगर जो ना आऊँ लौट के तुमसे मिलने
तो मै भी विक्रम बत्रा नहीं ।।
मैं भी विक्रम बत्रा नहीं ।।