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Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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अलविदा होती इक भयानक रात में

अलविदा होती इक भयानक रात में

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अलविदा होती इक भयानक रात में

चांदनी के गीत कल हमने सुने

याद आते ही गए उस पल हमें

चुक गए थे जानें अब तक अनसुने


चांदनी के गीत कल हमने सुने

गुनगुनाते चाँद की आवाज़ में

भोर में ऐसा लगा कि चाँद बरबस

आ खड़ा खिड़की के मेरे सामने


कह उठा उठ ! भांजे तूं सो रहा

आंधी और तूफान से घबरा रहा ?

देख मेरी धवलता और याद कर

कालिमा से मैं सदा लड़ता रहा


काले काले बादलों के झुण्ड जब

ग्रास लेते हैं मेरे अस्तित्व को

पूर्णिमा बन कर फिर निखर आता हूँ मैं

सीख ले लो तुम मेरे कृतित्व से


मैंने देखा सच में चंदा वीर है

संकटों में जूझता भी धीर है

पराक्रम की इस सीख से हम कल मिले

अलविदा होती इक भयानक रात में।


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