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Preeti Sharma "ASEEM"

Abstract

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Preeti Sharma "ASEEM"

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अखबार

अखबार

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बंद पड़ी सोच को,

जब हिलाना ही नहीं है

खबर पढ़कर भी जब,

आवाज़ उठाना ही नहीं है


टुकड़ा यह कागज का रद्दी नहीं, 

तो और क्या है़ं

कब तक ,खुद को 

दूसरे की आग से बचाओ


नफ़रतों की चपेट में, 

 तुम भी तो आओ

 यह बोले गा ! 

 वो बोलो गा ? 


गलत को गलत,

कहने को भी इतना सोचेगा

तू क्यों नहीं बोलेगा

अच्छे समाज को कौन बनायेगा


कलयुग है, भाई कलयुग है

यह तो सब रोते हैं

सतयुग कोई बाहर से नहीं आयेगा।


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