अकेलापन
अकेलापन
अकेलापन
काटने दौड़ता था मुझे
नींद नहीं आती थी
पर अब
जब से मेरी उससे दोस्ती हुई है
ढँढती हूँ अकेलापन
कतराती हूँ भीड़ से
अब डर नहीं लगता
जब भी अकेली होती हूँ
वो चुपके से आ जाती है
वही ,मेरी सखी कविता
जब से उससे दोस्ती की है
मैं अकेली कहाँ रहती हूँ!!
उल्टा ....
एकान्त ढूँढती हूँ...
उससे से बातें करने के लिए
वह मेरे भावों का साकार रूप है
मेरा सब कुछ
समा जाती हूँ उसमें
कह देती हूँ दिल की हर बात
केवल वही तो है ...
जिससे कुछ नहीं छिपा ..
बस अब तो
वह और मैं अकसर मिलते हैं एकान्त में
कहीं भी
किसी भी समय
उकेर देती हूँ उसे पन्नों पर
बन जाती है वह मेरी सबसे प्यारी सखी
कविता ,मेरे दिल की आवाज
मेरे अकेलेपन की साथी
कविता