अजीब दास्तान
अजीब दास्तान
अजीब दास्तान है मेरे इस नादान दिल की,
हर बार बॉल समझकर खेले गए खेल की।
ये प्यार की दास्तान अधूरी मेरी रह गई थी,
साथ रहने की जगह तन्हाई भेंट मिली थी।
हम तो छत पर बैठे हुए पढ़ाई कर रहे थे,
वो अचानक छत पर बैठ पढ़ने लग गई थी।
कॉलेज से आकर कुछ देर रेस्ट करना ही,
फ़िर देर रात तक पढ़ाई लिखाई करना ही।
इशारे से वो प्यार का इज़हार कर रही थी,
पढ़ाई तो बहाना वो आँखे चार कर रही थी।
कभी किताबें लेने के बहाने घर आती थी,
कभी नोट्स लेने के बहाने घर आती थी।
पहले तो मैं भी उसे इग्नोर करता रहा था,
परंतु धीरे-धीरे मुझे उनसे मुहब्बत हुई थी।
जब पूरी तरह उनके प्यार में पड़ गया था,
वो बेवफ़ा बेवफ़ाई करके दग़ा दे गई थी।