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Sanjeev Singh Sagar

Comedy

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Sanjeev Singh Sagar

Comedy

ऐ ज़िन्दगी बता!

ऐ ज़िन्दगी बता!

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ऐ ज़िन्दगी, 

मुझे जीना सीखा।

खुशियों में मुस्कुराना 

और गम में गुनगुनाना सीखा।

 

हार गया हूँ, जता के भरोसा।

कैसे कोई बनते हैं अपने, 

इस फ़रेब की नगरी में? 

किसी को अपना बनाना सीखा।

 

हर शहर, हर गली से, 

गुज़र कर थक चुका हूँ।

हर रिश्तें, हर विश्वास से, 

बिखर चुका हूँ।

 

सभी की अपनी-अपनी पड़ी थी, 

क्यों करते मेरी परवाह? 

उन सभी की दुनिया से बेखबर, 

पूरी तरह अलग हो चुका हूँ।

 

क्या करूँ? 

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी! 

मुझे जीना नहीं आता, 

मुझे जीना सीखा।


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