ऐ नौकरी ! मेरी नौकरी
ऐ नौकरी ! मेरी नौकरी
ऐ नौकरी मेरी नौकरी
तू है कहाँ तू है किधर
तुझे ढूंढती मेरी नजर।
जो मिल गई तो संवर गया,
गर न मिली तो बिखर गया।
तू है तो सब कुछ पास है,
तू जो गई तो सब गया।
बिन नौकरी कीमत नहीं,
कोई कितना भी पढ़ लिख गया।
तुझ बिन न बिछती है दरी,
तुझ बिन न मिलती सुन्दरी।
ऐ नौकरी मेरी नौकरी
तू है कहाँ तू है किधर
तुझे ढूंढती मेरी नजर।
नौकर ही बनना शान है,
और नौकरी में मान है।
तू जो नहीं कुछ भी नहीं,
तू साँस है तू जान है।
अपमान सहता बिन तेरे,
सम्मान की तू खान है।
आश्चर्य विस्मित मन हुआ,
तेरी देखकर कारीगरी।
ऐ नौकरी मेरी नौकरी
तू है कहाँ तू है किधर
तुझे ढूंढती मेरी नजर।
तेरे बिना कैसे रहूँ,
दुख दर्द मैं कैसे सहूँ।
तबीयत न माँ की ठीक है,
बोलें पिता लाओ बहू।
सुख चैन न दे पाउँगा,
अब उनसे मैं कैसे कहूँ।
जेबें हैं खाली खुशियाँ जाली
फिर भी बने हैं चौधरी।
ऐ नौकरी मेरी नौकरी
तू है कहां तू है किधर
तुझे ढूंढती मेरी नजर।
तेरे बिना न रिश्ता है,
और न ही कोई नाता है।
हाथ तो हैं मिलाते पर,
ना साथ कोई निभाता है।
सारे गणित ही भूलें अब,
कुछ गिनना भी ना आता है।
बस तेरे पीछे घूमते,
ले करके सारी ही डिग्री।
ऐ नौकरी मेरी नौकरी
तू है कहां तू है किधर
तुझे ढूंढती मेरी नजर।
जो नौकरी गले लग गई,
सब बाबू भैया कहते हैं।
नजरें जो फेरा करते थे,
अब साथ वो ही रहते हैं।
'ए्हसास' डिग्री धारी का,
जो डाँट गाली सहते हैं।
तू जो मिला इन्सान से,
लग गई जैसे लाटरी।
ऐ नौकरी मेरी नौकरी
तू है कहाँ तू है किधर
तुझे ढूंढती मेरी नजर।।